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जानिए अश्वगंधा की खेती कब और कैसे करें

Published on: 30-Jul-2021

अश्वगंधा की खेती औषधीय उपयोग के लिए की जाने लगी है। गांवों में इसके पत्तों को घाव एवं फोड़े को पकाने के लिए प्रयोग में लिया जाता है लेकिन इसकी जड़ से बनने वाले चूर्ण को कई रोगों में काम में लिया जाता है। 

यह बलवर्धक, कामोत्तेजक एवं स्फूर्तिदायक होता है। इसका उपयोग महिलाओं के गर्भाशय को मजबूत करने के अलावा यौनजनित रोगों में काम करता है। इसके पौधे दो चार फीट तक बढ़ जाते हैं। 

इसका जड़ पत्ता, फल और बीज सभी काम में आते हैं।अब इसकी व्यावसायिक खेती होने लगी है। पूर्व में यह क्षेत्र विशेष यानी राजस्थान के नागौर आदि में यूंही हो जाया करती है। इसकी खेती बलुई दोमट मिट्टी में अच्छी होती है।अच्छी जल निकासी वाली जमीन इसकी खेती के लिए बेहतर रहती है।

कैसे करें अश्वगंधा की खेती

अश्वगंधा की पौध जून-जुलाई में तैयार करके रोपी जाती है। बीज छिटककर भी इसकी खेती की जा सकती है लेकिन इसमें घने पौधों को हटाने का काम बढ़ जाता है। 

बीज बरसात आने से पहले या बरसात होने के बाद एक से तीन सेंटीमीटर गहरे कूढ़ों में बोए जाते हैं। इसके बाद इन्हें पौधे से पौधे और लाइन से लाइन की दूरी 60 सेंटीमीटर रखते हुए रोप दिया जाता है। एक हैक्टेयर खेत के लिए अधिकतम 700 ग्राम बीज पर्याप्त रहता है।

अश्वगंधा के सामयिक कार्य

बीज के बोए गए बीजों को अंकुरण के 25 दिन बाद छांटने का काम किया जाता है। अश्वंगधा का पौधा दो से तीन फीट तक जगह घेर लेता है। इस हिसाब से किस्मों का चयन करना चाहिए ताकि हमें अच्छी तादात में जड़ें मिलनी चाहिए। रोपण के बाद पानी की जरूरत होती है लेकिन आम तौर पर इसकी खेती को हल्की बरसात की जरूरत होती है।

उत्पादन

अश्वगंधा की फसल में दिसंबर के आसापास फल-फूल लगना शुरू होता है और करीब 150 से 180 दिन में फसल तैयार हो जाती है। परिपक्व फसल को उखाडा जाता है। 

तने को जड़ के प्रारंभ स्थल से दो से तीन सेंटीमीटर उूपर से काटकर जड़ के टुकड़ों में काटकर धूप में सुखाया जाता है। एक हैक्टेयर जमीन से 650 से 800 किलोग्राम जड़ें प्राप्त होती हैं। सूखने के बाद इनका बजन 350 से 400 किलोग्राम रह जाता है।

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