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जीरे की खेती कैसे की जाती है?

Published on: 31-Oct-2023

जीरा एक मसाला फसल है, जिसकी खेती मसाले के रूप में की जाती है। यह जीरा देखने में बिल्कुल सोंफ की तरह ही होता है, किन्तु यह रंग में थोड़ा अलग होता है | जीरे का उपयोग कई तरह के व्यंजनों में खुशबु उत्पन्न करने के लिए करते है।  

इसके अलावा इसे खाने में कई तरह से उपयोग में लाते है, जिसमे से कुछ लोग इससे पॉउडर या भूनकर खाने में इस्तेमाल करते है। जीरे का सेवन करने से पेट संबंधित कई बीमारियों से छुटकारा मिल जाता है। जीरे का पौधा शुष्क जलवायु वाला होता है, तथा इसके पौधों को सामान्य बारिश की आवश्यकता होती है भारत में जीरे की खेती सबसे अधिक राजस्थान और गुजरात में की जाती है, यहाँ पर पूरे देश का कुल 80% जीरा उत्पादित किया जाता है, जिसमे 28% जीरे का उत्पादन अकेले राजस्थान राज्य में होता है, इसके पश्चिमी क्षेत्र में राज्य का कुल 80% जीरा उत्पादन होता है | वही पड़ोसी राज्य गुजरात में राजस्थान की अपेक्षा अधिक पैदावार होती है | वर्तमान समय में जीरे की उन्नत किस्मो को ऊगा कर उत्पादन क्षमता को 25% से 50% तक बढ़ाया जा सकता है | अधिकतर किसान भाई जीरे की उन्नत किस्मो को उगाकर अच्छा लाभ भी कमा रहे है | यदि आप भी जीरे की खेती करना चाहते है, तो इस लेख में आपको जीरा की खेती कैसे करें (Cumin Farming in Hindi) तथा जीरा का भाव इसके बारे में जानकारी दी जा रही है।   

जीरे की खेती के लिए मिटटी की आवश्यकता                     

जीरे की अच्छी पैदावार के लिए बलुई दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है | इसकी खेती में भूमि उचित जल निकासी वाली होनी चाहिए, तथा भूमि का P.H. मान भी सामान्य होना चाहिए | जीरे की फसल रबी की फसल के साथ की जाती है, इसलिए इसके पौधे सर्द जलवायु में अच्छे से वृद्धि करते है | इसके पौधों को सामान्य बारिश की आवश्यकता होती है, तथा अधिक गर्म जलवायु इसके पौधों के लिए उपयुक्त नहीं होती है | जीरे के पौधों को रोपाई के पश्चात् 25 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है, तथा पौधों की वृद्धि के समय 20 डिग्री तापमान उचित होता है | इसके पौधे अधिकतम 30 डिग्री तथा न्यूनतम 20 डिग्री तापमान को आसानी से सहन कर सकते है |

जीरे की किस्में 

वर्तमान समय में जीरे की कई तरह की उन्नत किस्मो को तैयार किया गया है, जो अलग-अलग जलवायु के हिसाब से अधिक पैदावार देने के लिए उगाई जाती है। आर. जेड. 19 , जी. सी. 4 , आर. जेड. 209 , जी.सी. 1

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जीरे की बुवाई के लिए भूमि की तैयारी        

जीरे की फसल करने से पहले उसके खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लिया जाता है। इसके लिए सबसे पहले खेत की मिट्टी पलटने वाले हलो से गहरी जुताई कर दी जाती है। जुताई के बाद खेत को कुछ समय के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दिया जाता है। इसके बाद खेत में प्राकृतिक खाद के तौर पर 10 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद डालकर जुताई कर दी जाती है, इससे खेत की मिट्टी में खाद अच्छी तरह से मिल जाती है।  खाद को मिट्टी में मिलाने के बाद दो से तीन तिरछी जुताई कर दी जाती है। जुताई के बाद खेत में पानी लगाकर पलेव कर दिया जाता है। 

फसल में उर्वरक और खाद प्रबंधन 

पलेव के बाद खेत की आखरी जुताई के समय 65 किलो डी.ए.पी. और 9 किलो यूरिया का छिड़काव खेत में करना होता है | इसके बाद खेत में रोटावेटर लगाकर खेत की मिट्टी को भुरभुरा कर दिया जाता है | मिट्टी के भुरभुरा हो जाने के बाद पाटा लगाकर खेत को समतल कर दिया जाता है| इससे खेत में जलभराव की समस्या नहीं उत्पन्न होती है | इसके अतिरिक्त 20 से 25 KG यूरिया  की मात्रा को पौधों के विकास के समय तीसरी सिंचाई के दौरान पौधों को देना होता है |

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जीरे की बुवाई के लिए बीज दर                

जीरे के बीजों की रोपाई बीज के रूप में की जाती है| इसके लिए छिड़काव और ड्रिल तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है | ड्रिल विधि द्वारा रोपाई करने के लिए एक एकड़ के खेत में 8 से 10 KG बीजो की आवश्यकता होती है | वही छिड़काव विधि द्वारा बीजो की रोपाई के लिए एक एकड़ के खेत में 12 KG बीज की आवश्यकता होती है | बीजो को खेत में लगाने से पूर्व उन्हें कार्बनडाजिम की उचित मात्रा से उपचारित कर लिया जाता है | छिड़काव विधि के माध्यम से रोपाई के लिए खेत में 5 फ़ीट की दूरी रखते हुए क्यारियों को तैयार कर लिया जाता है |

बीज की बुवाई 

इन क्यारियों में बीजो का छिड़काव कर उन्हें हाथ या दंताली से दबा दिया जाता है| इससे बीज एक से डेढ़ CM नीचे दब जाता है | इसके अलावा यदि आप ड्रिल विधि द्वारा बीजो की रोपाई करना चाहते है, तो उसके लिए आपको खेत में पंक्तियो को तैयार कर लेना होता है, तथा प्रत्येक पंक्ति के मध्य एक फ़ीट की दूरी रखी जाती है | पंक्तियों में बीजो की रोपाई 10 से 15 CM की दूरी पर की जाती है | चूंकि जीरे की फसल रबी की फसल के साथ लगाई जाती है, इसलिए इसके बीजो को नवंबर माह के अंत तक लगाना उचित होता है। 

फसल में सिचांई प्रबंधन  

जीरे के पौधों को सिंचाई की सामान्य जरुरत होती है।  इसकी प्रारंभिक सिंचाई बीज रोपाई के तुरंत बाद कर दी जाती है, तथा प्रारंभिक सिंचाई को पानी के धीमे बहाव के साथ करना होता है, ताकि बीज पानी के तेज बहाव से बहकर किनारे न आ जाये। इसके पौधों को अधिकतर 5 से 7 सिंचाई की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई के बाद बाकी की सिंचाई को 10 से 12 दिन के अंतराल में करना होता है |

फसल में खरपतवार नियंत्रण 

जीरे के खेत में खरपतवार नियंत्रण के लिए रासायनिक और प्राकृतिक दोनों ही विधियों का इस्तेमाल किया जाता है। रासायनिक विधि में आक्साडायर्जिल की उचित मात्रा को पानी के साथ मिलाकर घोल बना लिया जाता है, जिसे बीज रोपाई के तत्पश्चात खेत में छिड़क दिया जाता है| प्राकृतिक विधि में पौधों की निराई-गुड़ाई की जाती है। इसकी पहली गुड़ाई बीज रोपाई के तक़रीबन 20 दिन बाद की जाती है, तथा बाकी की गुड़ाई को 15 दिन के अंतराल में करना होता है। इसके पौधों को अधिकतम दो से तीन गुड़ाई की ही आवश्यकता होती है। 

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फसल की उपज 

जीरे की उन्नत किस्में बीज रोपाई के तक़रीबन 100 से 120 दिन पश्चात् पैदावार देने के लिए तैयार हो जाती है। जब इसके पौधों में लगे बीजो का रंग हल्का भूरा दिखाई देने लगे उस दौरान पुष्प छत्रक को काटकर एकत्रित कर खेत में ही सूखा लिया जाता है। इसके बाद सूखे हुए पुष्प छत्रक से मशीन द्वारा दानो को निकल लिया जाता है। उन्नत किस्मो के आधार पर जीरे के एक हेक्टेयर के खेत से लगभग 7 से 8 क्विंटल की पैदावार प्राप्त हो जाती है।  जीरा का बाज़ारी भाव 200 रूपए प्रति किलो तक होता है, जिस हिसाब से किसान भाई जीरे की एक बार की फसल से 40 से 50 हज़ार तक की कमाई कर अच्छा मुनाफा कमा सकते है। 

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