अरहर मनुष्यों को ही नहीं वरन कीटों को भी खूब भाती है। अरहर की खेती को सुरक्षित रखने के लिए अरहर के कीट, बीमारियों की समझ और समय से नियंत्रण बेहद आवश्यक है।
फली भेदक कीट
फलियों में सूराख करके उसके दाने खा जाता है। इससे बचाव के लिए मोनोक्रोटोफास 36 ईसी एक हजार मिली लीटर प्रति हैक्टेयर या फिर साइपरमैथरिन 20 ईसी का 400 मिली लीटर मात्रा का पानी में घोलकर छिड़काव करें। जैविक उपचार के लिए एनपीवी 350 एलई प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करें। पौधे की पत्ती जब सिकुड़ी दिखें तो समझ लेना चाहिए कि पत्ती लपेटक का प्रभाव है। अरहर के इस कीट की रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफास 36 ईसी की 800 मिली लीटर मात्रा का छिड़काव करें।
फली के अंदर दाने को खाती है। इससे बचाव के लिए मोनोक्रोटोफास या डाईमिथोएट कीटनाशक का छिड़काव फूल आने की अवस्था पर करना चाहिए।
अरहर का प्रमुख रोग है। यह फ्यूजेरियम नामक फफूंद से पनता है। यह पूरी फसल को चौपट कर सकता है। यह पौधे को पोषक तत्व एवं पानी का संचार रोक देता है। इस रोग के बाचाव के लिए कार्बन्डाजिम या थीरम से 3 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से बीज को उपचारित करके बोना चाहिए। इसके अलावा जिस खेत में यह रोग एक बार आ जाए उसमें तीन साल तक अरहर नहीं लगानी चाहिए। खड़ी फसल पर रोग संक्रमण दिखे तो तत्काल फफूंदनाशक का छिड़काव करें।