ग्वार की खेती कम लागत वाली और कम पानी वाली फसल मानी जाती है। इसे मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में किया जाता है। बीते सालों में तो ग्वार गम की मांग इस कदर बढ़ी की किसी भाव इसका बीज नहीं मिला।
इसे सब्जी, हरा चारा, हरी खाद एवं ग्वार गम के दानों के लिए उगाया जाता है। गहरे जड़ तंत्र वाली फसल होने के साथ इसकी जड़ों से अन्य दलों की तरह मिट्टी में नत्रजन की मात्रा बढ़ती है।
इसके दानो में 40 से 45% तक प्रोटीन होता है। इसके अलावा गैलेक्टोमेन्नन ग्वार गम मिलने के कारण इसे औद्योगिक फसल भी माना जाता है। इसकी उद्योगों के लिए विशेष मांग रहती है।
ग्वार की खेती
मृदा एवं जलवायु
ग्वार की खेती के लिए उपजाऊ मिट्टी श्रेष्ठ रहती है। बाकी इसे हर तरह की मिट्टी में लगाया जा सकता है। बेहतर जल निकासी वाली जमीन इसकी खेती के लिए उपयुक्त रहती है क्योंकि इसकी जड़ें जमीन में गहरे तक जाती है लिहाजा खेत की जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से गहरे तक करनी चाहिए।
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बुवाई का समय
ग्वार की बिजाई के लिए जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक का समय उचित रहता है लेकिन जून में उन्हीं इलाकों में बिजाई करनी चाहिए जहां सिंचाई के साधन हो अन्यथा की दशा में जुलाई के पहले हफ्ते में ही इसकी बिजाई करनी चाहिए।
ग्वार की उन्नत किस्में
अच्छे
उत्पादन के लिए उन्नत किस्म का होना आवश्यक है ग्वार कई प्रयोजनों से लगाई जाती है लिहाजा इस चीज का ध्यान रखकर ही किस्म चुनें।
ग्वार की खेती दाने के लिए हरे चारे के लिए हरी खाद के लिए एवं सब्जी वाली फली के लिए की जाती है और इसकी अलग-अलग किस्में है।
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मध्य प्रदेश राज्य के लिए दाने वाली किस्में
इस श्रेणी की एचजी 565 किस्म कम समय में पकने वाली है इससे उपज 20 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक मिलती है एचजी 365 किस हमसे भी उपरोक्त अनुसार उपज मिलती है आरजीसी 1066 किस्म की उपज 18 कुंटल तक मिलती है।
पूसा नवबाहर किस्म देरी से पकती है एवं इससे 40 से 50 कुंतल तक फलियां प्राप्त होती हैं। इस श्रेणी की दुर्गा बहार किस्म का फूल सफेद होता है और उपज 55 कुंटल के पार मिलती है।
चारे के लिए लगाई जाने वाली किस्मों में एच एफ जी 119 देरी से पकने वाली किस्म है। इससे 300 से 325 कुंतल चारा मिलता है।
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हरियाणा राज्य के लिए ग्वार की किस्में
हरियाणा राज्य के लिए ग्वार की एचजी 75, 182, 258, 365 ,563, 870 , 884, 867 तथा एच जी-2 -204 आदि किसमें प्रमुख हैं।
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राजस्थान राज्य के लिए ग्वार की किस्में
राजस्थान के लिए आरजीसी सीरीज की 1033, 1066,1038, 1003, 1002, 986,112 आरजीसी 197 किस्में प्रमुख हैं।
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पंजाब के लिए ग्वार की किस्में
हरियाणा राज्य के लिए संस्कृत सभी किस्मों के अलावा एचजी 112किस्म यहां के लिए उपयुक्त है।
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उत्तर प्रदेश के लिए ग्वार की किस्में
उत्तर प्रदेश के लिए hg 563 एवं 365 किस्म उपयुक्त हैं। गुजरात के लिए जीसी एक एवं 238 किसमें संस्तुत हैं।
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आंध्र प्रदेश के लिए ग्वार की किस्में
आंध्र प्रदेश के लिए आरजीसी 936 , आरजीएम 112 एचजी 563, एचजी 365 किस्म उपयुक्त हैं। महाराष्ट्र हेतु आरजीसी 9366, एचजी 563 एवं 365 किस्म उपयुक्त हैं।
बीज दर
क्योंकि ग्वार का उत्पादन कई प्रयोजनों के लिए किया जाता है अतः ग्वार बीज उत्पादन हेतु 15 से 20 किलोग्राम, सब्जी के लिए 15 किलोग्राम, चारा एवं हरी खाद के लिए 40 से 45 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए।
बीज जनित रोगों से बचाव के लिए कार्बेंडाजिम 1 ग्राम एवं कैप्टन 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज में मिलाकर उपचारित करके ही बीज बोना चाहिए। इसके अलावा 20 पर राइजोबियम कल्चर का लेप करने से उत्पादन बढ़ता है।
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उर्वरक प्रबंधन
उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर ही करना चाहिए लेकिन यदि मिट्टी की जांच नहीं हुई है तो दाने वाली फसल में 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस 20 बटा 25 गंधक एवं 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें।
सब्जी वाली फसल के लिए 25 केजी नाइट्रोजन, 50 फास्फोरस, 20 पोटाश, 25 गंधक एवं 20 केजी जिंक आखरी जोत में मिला देनी चाहिए। चारा उत्पादन वाली फसल में गंधक एवं जिनक नहीं डालनी चाहिए।
पोटाश की मात्रा दोगुनी की जा सकती है। इसके अलावा नाइट्रोजन 20 किलोग्राम एवं फास्फोरस 50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से डालना चाहिए।
ग्वार में कीट रोग नियंत्रण
ग्वार में कई तरह के कीट लगते हैं ।आवारा पशुओं को भी यह बेहद भारती है । इसकी खेती गांव में सड़क के नजदीकी खेतों में नहीं करनी चाहिए ।
पशुओं से नुकसान होने की आशंका वाले क्षेत्रों में इसकी खेती कड़ी सुरक्षा के बाद ही सफल होगी। ग्वार के महु या चेंपा भी लगता है इसे रोकने के लिए अमीना क्लोरोफिल एवं डाई मेथड में से किसी एक दवा की उचित मात्रा का छिड़काव करें।
फली एवं पति छेदक कीट के नियंत्रण के लिए चुनाव फास्ट डे डे मील प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। लिफाफा जैसे जैसे भी कहा जाता है कि नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड की उचित मात्रा कार्य पर पर ध्यान पूर्वक निर्देश पढ़कर छिड़काव करें।
फफूंदी जनित रोगों से बचाव के लिए कार्बेंडाजिम मैनकोज़ेब एवं घुलनशील गंधक में से किसी एक का एक दो बार छिड़काव करें। बैक्टीरियल बीमारियों के लिए स्टेप तो साइकिल इन 3 ग्राम प्रति एकड़ पर्याप्त पानी में घोलकर छिड़काव करें।