Ad

असम के चावल की विदेशों में भारी मांग, 84 प्रतिशत बढ़ी डिमांड

Published on: 30-Aug-2022

भले ही भारत के पूर्वोत्तर राज्य विकास की मुख्यधारा में अन्य राज्यों की तरह न जुड़ पाए हों, लेकिन इन राज्यों ने अब वो कर दिखाया है जो खेती-किसानी के क्षेत्र में क्रांतिकारी कदम है। दरअसल, अब असम राज्य की मुख्य फसल विदेशों में नाम कमाने लगी है जो राज्य के निवासियों के लिए कमाल की खबर है। गौर करने वाली बात है कि उत्तर भारतीय राज्यों के इतर असम में किसान मुख्यतौर पर गेहूं की बजाय धान उगाते हैं।

ये भी पढ़ें:
धान की किस्म पूसा बासमती 1718, किसान कमा पाएंगे अब ज्यादा मुनाफा यहां के चावल की खूशबू और स्वाद कमाल का होता है जिसके चलते देशभर में, यहां से आए चावलों को लोग बड़े चाव से खाते हैं और खपत भी काफी है। चूंकि, लोगों के बीच असम से आने वाले चावल खासे पसंद किए जाते हैं, यही वजह है कि पिछले सालों के दौरान यहां कि कुछ किस्मों को जीआई टैग दिया गया था। अब हाल ही में असम के चावल की कुछ किस्में दुबई भेजी गईं। इन चावलों को APEDA के सहयोग से भेजा गया। दुबई भेजी जाने वाली किस्मों का नाम जोहा और एजुंग (Izong rice) हैं। गौर करने वाली बात है कि असम का जोहा चावल (Joha Rice) बासमती से कम नहीं है। इसकी विशेषता के कारण ही इसे जीआई टैग दिया गया है। वैसे इसकी सुगंध बासमती जैसी नहीं है बल्कि थोड़ी अलग है। लेकिन जोहा अपने स्वाद, खुशबू और खास तरह के आनाज को लेकर जाना जाता है। इसकी विदेशों में मांग बासमती से कम नहीं है। यह खबर असम के किसानों को उत्साहित करने वाली है।

ये भी पढ़ें:
धान की लोकप्रिय किस्म पूसा-1509 : कम समय और कम पानी में अधिक पैदावार : किसान होंगे मालामाल APEDA के अध्यक्ष एम अंगमुथु ने कहा है कि जिस तरह का मौसम असम का रहता है, उसे देखते हुए यहां सभी तरह की बागवानी फसलें उगाई जा सकती हैं। साथ ही यहां से निर्यात भी आसानी से किया जा सकता है क्योंकि बगल से भूटान, बांग्लादेश, म्यांमार और चीन जैसे देश हैं जो राज्य से अपनी सीमा साझा करते हैं। वैसे चावल ही असम की एकमात्र फसल नहीं है जिसकी विदेशों में मांग है। बल्कि यहां के नींबुओं की मांग मिडिल ईस्ट और ब्रिटेन में बहुत है। यही वजह है कि यहां से अब तक 50 मीट्रिक टन नींबू का एक्सपोर्ट पहले ही किया जा चुका है। यही नहीं, यहां के कद्दू और लीची भी बाहर भेजे जा रहे हैं और लोग इनके स्वाद को खासा पसंद भी कर रहे हैं। पूर्वोत्तर राज्यों ने पिछले छह सालों में खेती में अपना नया मुकाम स्थापित किया है, जो इन राज्यों की सफलता की कहानी कहता है। एक आंकड़े के मुताबिक, पिछले छह सालों में यहां उगने वाले कृषि उत्पादों के निर्यात में करीब 84 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखने को मिली है। जाहिर है कि आने वाले सालों में इन राज्यों का कृषि में योगदान और बढ़ेगा और जिसका असर देश की जीडीपी में होगा, जो सुखद बात है।

Ad