Published on: 29-Nov-2022
किसान जितनी मेहनत करते हैं, उन्हें उतना पैसा मिल जाता तो क्या कहना था। लेकिन, एक समस्या यह भी है, कि किसान आमतौर पर पारंपरिक खेती से इतर प्रयोग करने से बचाते हैं। लेकिन, आज हम एक ऐसी फसल के बारे में बता रहे है, जिसकी खेती की जाए तो जिन्दगी से आर्थिक आलस का खात्मा तय है। आज हम बात कर रहे हैं, अलसी की।
अलसी एक प्रयोग अनेक
अलसी तिलहन फसल है और आजकल यह बहुत बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है। इसकी वजह है, इसमें ओमेगा फैटी एसिड का पाया जाना, अलसी के तेल का पेंट्स, वार्निश व स्नेहक बनाने के साथ पैड इंक तथा प्रेस प्रिटिंग हेतु स्याही तैयार करने में उपयोग किया जाता है। इसमें पोषक तत्वों की उचित मात्रा होने के कारण इसका उपयोग खाद के रूप में किया जाता है।
मौसम:
इसकी खेती के लिए ठंडे व शुष्क जलवायु की जरूरत है, यह असल में रबी फसल है। इसके उचित अंकुरण हेतु 25-30 डिग्री से.ग्रे. तापमान तथा बीज बनते समय तापमान 15-20 डिग्री से.ग्रे. होना चाहिए।
जमीन:
इसकी खेती के लिये काली भारी एवं दोमट (मटियार) मिट्टी सही है, अधिक
उपजाऊ मृदाओं की अपेक्षा मध्यम उपजाऊ मृदायें अच्छी समझी जाती हैं। उचित जल निकास का प्रबंध होना चाहिए। खेत भुरभुरा एवं खरपतवार रहित होना चाहिये, दो से तीन बार हैरो चलाना आवश्यक है, जिससे नमी संरक्षित रह सके।
अलसी के बीज को कार्बेन्डाजिम की 2.5 से 3 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिये अथवा ट्राइकोडरमा विरीडी की 5 ग्राम मात्रा अथवा ट्राइकोडरमा हारजिएनम की 5 ग्राम एवं कार्बाक्सिन की 2 ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम बीज को उपचारित कर बुवाई करनी चाहिये।
बेहतर उत्पादन के लिए इसे 2 सिंचाई की आवश्यकता होती है, पहली सिंचाई बुवाई के एक माह बाद एवं दूसरी सिंचाई फल आने से पहले करनी चाहिये। विभिन्न प्रकार के रोग जैसे गेरूआ, उकठा, चूर्णिल आसिता तथा आल्टरनेरिया अंगमारी एवं कीट यथा फली मक्खी, अलसी की इल्ली, अर्धकुण्डलक इल्ली चने की इल्ली द्वारा भारी क्षति पहुचाई जाती है। इसके लिए उचित प्रबंधन किए जाने की जरूरत है।
अलसी की जब पत्तियाँ सूखने लगें, केप्सूल भूरे रंग के हो जायें और बीज चमकदार बन जाय तब
फसल की कटाई करनी चाहिये। बीज में 70 प्रतिशत तक सापेक्ष आद्रता तथा 8 प्रतिशत नमी की मात्रा भंडारण के लिये सर्वोत्तम है।