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क्या आपके राज्य के दिहाड़ी मजदूर का हाल भी गुजरात और मध्य प्रदेश जैसा तो नहीं

Published on: 27-Nov-2022

अगर आंकड़ों की बात की जाए तो देश में हर 12 मिनट में एक दिहाड़ी मजदूर आत्महत्या कर लेता है, अब सोचने की बात यह है कि ऐसा क्यों है ?? हाल ही में जारी किए गए आरबीआई के आंकड़ों की तरफ देखा जाए तो आरबीआई ने हर राज्य के अनुसार दिहाड़ी मजदूरों की राष्ट्रीय औसत आय बताई है। जहां पर केरल में दिहाड़ी मजदूरों को जहां लगभग ₹730 मिले वहीं पर कुछ राज्य जैसे कि मध्यप्रदेश और गुजरात के आंकड़े बहुत ज्यादा चौंका देने वाले हैं। गुजरात में जहां दिहाड़ी मजदूरों की आय ₹220 के लगभग है, वहीं पर मध्यप्रदेश में तो हालात और भी खराब हैं। मध्य प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में दिहाड़ी मजदूरों की आय लगभग ₹217 के करीब है। ऐसे में अगर आंकड़ों को देखा जाए तो गुजरात में अगर एक दिहाड़ी मजदूर महीने में लगभग 25 दिन काम करता है। तो उसकी आमदनी लगभग 5500 ₹ होती हैं, जो तीन-चार लोगों के परिवार को पालने के लिए काफी नहीं है।

कितना है अलग अलग दिहाड़ी मजदूरों की आमदनी का आंकड़ा

अगर बागवानी कंस्ट्रक्शन और गैर कृषि से जुड़े हुए मजदूरों की आमदनी के बारे में बात की जाए तो वहां भी केरल राज्य सबसे आगे है। गुजरात और मध्य प्रदेश सबसे नीचे पाए गए हैं। अगर उदाहरण के लिए देखा जाए तो 2020-21 के आंकड़ों के अनुसार जहां केरल में कंस्ट्रक्शन वर्कर्स को लगभग ₹840 के करीब दिया जाता है, वही गुजरात और मध्यप्रदेश में यह आंकड़ा ₹237 के करीब है। औसतन आधार पर देखा जाए तो केरल के मुकाबले यह लगभग 4 गुना कम है। यही हाल बागवानी और गैर कृषि से जुड़े हुए मजदूरों का भी है, इन दोनों क्षेत्रों में भी केरल सबसे आगे है एवं गुजरात और मध्य प्रदेश सबसे निचले स्तर पर आते हैं और आमदनी का अंतर लगभग 2 गुना कम है।


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मनरेगा में मिलने वाली दिहाड़ी

मजदूरों के लिए खास तौर पर बनाई गई योजना मनरेगा के तहत सरकार की तरफ से किसानों को साल में 120 दिन के लिए काम देना अनिवार्य है। अगर यहां पर मजदूरों की दिहाड़ी की बात की जाए तो हरियाणा में यह सबसे ज्यादा है। हरियाणा में लगभग 1 दिन काम करने के लिए मजदूरों को ₹331 दिए जाते हैं। यहां पर लिस्ट में इससे नीचे गोवा है, जहां पर यह आमदनी ₹315 है और उसके बाद 311 रुपए के साथ केरल तीसरे नंबर पर बना हुआ है।


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कम मजदूरी है चिंता का विषय

इन सबके अलावा काम में आ रही कमी लोगों की चिंता का विषय बनती जा रही है। माना जा रहा है, कि मनरेगा के तहत भी नौकरियों की मांग कम होती जा रही है, और उन्हें काम मिलने की संभावनाएं ना के बराबर हो गई हैं। ऐसे में जरूरी है, कि सरकार कुछ ऐसे कदम उठाए, जिसमें एक दिहाड़ी मजदूर भी मेहनत कर अच्छी तरह से अपने परिवार का पेट पाल पाए। राज्य सरकारों को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि उनके राज्य में दिहाड़ी मजदूरों की आमदनी का क्या स्तर चल रहा है, जिससे वह समय आने पर इस पर सही तरह का एक्शन ले सकें।

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