भारतीय कृषक आजकल परिवर्तित होते जमाने में फिलहाल यह मानने लगे हैं, कि खेती केवल पारंपरिक फसलों की वजह बाकी फसलों का उत्पादन करना चाहिए। जिससे कि किसान खेती से बेहतरीन आमदनी हो पाए।
कम वक्त के अंदर अधिक आय अर्जित की जा सके। इसी वजह से किसान आज धान, गेंहू की भांति पारंपरिक फसलों के स्थान पर फल, सब्जी एवं औषधीय पौधों पर भी जोर दिया जा रहा है।
इस परिस्थिति में आपको आड़ू फल की कृषि की विधिवत प्रक्रिया बता रहे हैं। आड़ू एक फलदार पर्णपाती वृक्ष है, जिसकी गिनती गुठली वाले वृक्षों में होती है।
आड़ू के ताजे फलों का सेवन किया जाता है। साथ ही, आड़ू द्वारा कैंडी, जैम एवं जैली प्रकार की वस्तुऐं भी निर्मित की जाती हैं। इसके अतिरिक्त फल में शक्कर प्रचूर मात्रा में होती है।
जिसकी वजह इसका फल खाने में खूब स्वादिष्ट एवं रसीला होता है। इसके अतिरिक्त आड़ू की गिरी के तेल का उपयोग विभिन्न प्रकार के कॉस्मेटिक उत्पाद एवं दवाईयां निर्माण में होता है।
इसके अंदर लोहे, फ्लोराइड एवं पोटाशियम की प्रचूर मात्रा रहती है, आड़ू की मांग अत्यधिक होने की वजह से इसकी कृषि फायदेमंद है।
ठंडों में देर में पाला पड़ने वाले क्षेत्रों में खेती उपयुक्त नहीं मानी जाती। आड़ू की कृषि घाटी, तराई, मध्य पर्वतीय क्षेत्र एवं भावर क्षेत्रों के सबसे अनुकूल मानी जाती है।
ये भी पढ़ें: जिस स्ट्रोबेरी के है सब दीवाने, उसे उगाकर किस्मत चमकालें
इसके अतिरिक्त खेत को समतल बना लेना चाहिए एवं रोपाई अथवा बुवाई से 15-20 दिन पूर्व 1 x 1 x 1 मीटर के गड्ढे खोद कर धूप में छोड़ देना चाहिए।
उसके बाद 15-25 किलोग्राम गली सड़ी गोबर की खाद 125 ग्राम नाइट्रोजन, 50 ग्राम फास्फोरस, 100 पोटाश व 25 मिलीलीटर क्लोरपाइरीफॉस के घोल से गड्ढों को भरने के उपरांत सिंचाई करें। जिससे कि मिट्टी दबकर ठोस हो जाए।
उसके बाद पौधों को गड्ढों में रोपने के उपरांत उनके चारों ओर जड़ से एक सेंटीमीटर ऊंचाई तक मृदा डालकर बेहतर ढंग से दबा देना चाहिए। बुवाई हेतु पौधों के मध्य 6 x 6 मीटर की दूरी होनी जरुरी है।
ये भी पढ़ें: गौमूत्र से बना ब्रम्हास्त्र और जीवामृत बढ़ा रहा फसल पैदावार