बुंदेलखंड के किसानों की किस्मत श्यामा तुलसी की खेती से बदल रही है। तुलसी की बढ़ती मांग के कारण इस साल क्षेत्र में इसकी खेती का विस्तार हुआ है। पिछले साल तुलसी की खेती 2800 एकड़ में की गई थी, जो इस साल बढ़कर 6000 एकड़ हो गई है।
अधिकारियों की योजना है कि बुंदेलखंड को तुलसी उत्पादन का हब बनाया जाए, ताकि आयुर्वेदिक कंपनियों को आकर्षित किया जा सके।
बुंदेलखंड की मिट्टी श्यामा तुलसी के लिए बहुत उपयुक्त है। कम लागत और अन्ना जानवरों से फसलों को होने वाले नुकसान के कारण किसान तेजी से तुलसी की खेती की ओर रुख कर रहे हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, श्यामा तुलसी की बुवाई में कम लागत आती है और इसे अन्ना जानवरों से नुकसान नहीं होता। साथ ही, इसे सिंचाई के लिए ज्यादा पानी की भी आवश्यकता नहीं होती।
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इन सभी कारणों से बुंदेलखंड के किसान इसे आसानी से अपना रहे हैं।
उद्यान अधिकारियों के अनुसार, वर्ष 2015 में बुंदेलखंड में कुछ ही किसान श्यामा तुलसी की खेती कर रहे थे, लेकिन अब यह संख्या हजारों में पहुंच गई है।
जालौन और ललितपुर में भी लगभग साढ़े चार सौ किसान इस खेती में शामिल हैं। झांसी में पिछले साल 2820 एकड़ में तुलसी की बुवाई हुई थी और इस साल यहां खेती का क्षेत्रफल बढ़ाया जा रहा है।
बंगरा और गुरसराय में तुलसी उत्पादन का लक्ष्य भी बढ़ाया गया है।
बुंदेलखंड में तुलसी के उत्पादन की वृद्धि से यहां प्रोसेसिंग प्लांट की स्थापना भी की जा रही है।
उद्यान विभाग के सहायता से बंगरा में एक प्लांट लगाया जा रहा है, जिससे तुलसी के तेल सहित अन्य औषधीय उत्पाद तैयार किए जा सकेंगे।
कई जानी-मानी आयुर्वेदिक कंपनियां इस्तेमाल के लिए तुलसी को सीधे किसानों से खरीद रही हैं।
तुलसी की खेती सिर्फ 70 दिनों में हो जाती है और इसकी लागत भी कम होती है, जिसके कारण किसानों में इसमें बढ़ती हुई रुचि देखने को मिल रही है।
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कृषि विश्वविद्यालय बांदा के सहायक अध्यापक एस तोमर बता रहे हैं कि तुलसी की खेती में डाबर और आर्गेनिक इंडिया जैसी नामी कंपनियां बुंदेलखंड के कई जिलों में समूह के रूप में किसानों से उपज करवा रही हैं।
ये कंपनियां किसानों को बीज प्रदान कर रही हैं और उनके उत्पाद (पत्तियाँ और तेल) को घर बैठे उचित मूल्य पर खरीद रही हैं।
एक एकड़ में लगभग 40 लीटर तुलसी तेल निकलता है, और प्रति लीटर कंपनी 1200 रुपये में तेल खरीद रही है।