सौंफ की खेती: जलवायु, मिट्टी, बुवाई, और उन्नत किस्में के साथ उच्च उपज के लिए सम्पूर्ण मार्गदर्शन

Published on: 21-Jun-2024
Updated on: 21-Jun-2024

सौंफ (Foeniculum vulgare) एक प्रमुख मसाला फसल है जिसे भारतीय उपमहाद्वीप में व्यापक रूप से उगाया जाता है। 

इसका उपयोग मुख्य रूप से भोजन में स्वाद बढ़ाने और औषधीय गुणों के लिए किया जाता है। 

सौंफ के बीजों से तेल भी निकाला जाता है, इसकी खेती मुख्य रूप से गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, आँध्रप्रदेश, पंजाब तथा हरियाणा में की जाती है। इस लेख में हम सौंफ की खेती के बारे में सम्पूर्ण जानकारी देंगे।

सौंफ की खेती के लिए जलवायु और मिट्टी की आवश्यकता

सौंफ की खेती के लिए समशीतोष्ण जलवायु उपयुक्त होती है। यह ठंडे और शुष्क जलवायु में बेहतर होती है। अधिक आर्द्रता या अत्यधिक गर्मी से फसल को नुकसान हो सकता है।

सौंफ के लिए दोमट या बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। मिट्टी का पीएच स्तर 6.0 से 7.0 के बीच होना चाहिए। 

जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए क्योंकि जलजमाव से फसल को नुकसान हो सकता है। इसकी खेती के लिए भूमि को अच्छे से तैयार करना बहुत आवश्यक होता है।

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भूमि की तैयारी

खेत की गहरी जुताई करें ताकि मिट्टी भुरभुरी और अच्छी तरह से हवादार हो जाए।

खाद: गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट मिलाकर मिट्टी की उर्वरता बढ़ाएं। नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश की उचित मात्रा का उपयोग करें।

बुवाई का समय

समय: सौंफ की बुवाई का उपयुक्त समय अक्टूबर से नवंबर तक होता है।

बीज: उच्च गुणवत्ता वाले, प्रमाणित बीजों का चयन करें।

सौंफ की उन्नत किस्मे कौन सी है?

सौंफ की अच्छी उपज पाने के लिए उन्नत किस्मों का ही इस्तेमाल करे जिससे की उत्पादन अधिक हो और आप अधिक मुनाफा कमा सकें, इसकी प्रमुख किस्मे है - कि सी.ओ.1, गुजरात फनेल 1, आर.ऍफ़ 35, आर.ऍफ़101, आर.ऍफ़125, एन पी.डी. 32 एवं एन पी.डी.186, एन पी.टी.163, एन पी. के.1, एन पी.जे.26, एन पी.जे.269 एवं एन पी.जे131, पी.ऍफ़ 35, उदयपुर ऍफ़ 31, उदयपुर ऍफ़ 32, एम्. एस.1 तथा जी.ऍफ़.1 आदि है।

बुवाई के लिए बीज और बुवाई का तरीका 

सौंफ की फसल उत्पादन के लिए खेत की तैयारी के बाद बीज की आवश्यकता होती है। बुवाई के समय बीज दर लगभग 8-10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बीज की बुवाई करें। 

बीजों को फफूंदनाशक से उपचारित करें ताकि रोगों से बचाव हो सके। बीजों को 2-3 सेंटीमीटर गहराई पर बोएं। कतारों के बीच 45-60 सेंटीमीटर और पौधों के बीच 10-15 सेंटीमीटर की दूरी रखें।

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फसल में सिंचाई प्रबंधन

सौंफ की फसल में बुवाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें। 10-15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। फसल में सिंचाई का फूल आने के समय और बीज बनने के समय विशेष ध्यान दें।

फसल में उर्वरक प्रबंधन

नाइट्रोजन 30-40 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की दर से दें। आधी मात्रा बुवाई के समय और आधी मात्रा पहली निराई के समय दें।

फॉस्फोरस और पोटाश बुवाई के समय 25-30 किलोग्राम फॉस्फोरस और 20-25 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से दें।

फसल में खरपतवार नियंत्रण

पहली सिंचाई के बाद निराई-गुड़ाई करना आवश्यक रहता है तथा 45 से 50 दिन बाद दूसरी निराई गुड़ाई करना आवश्यक होता हैI बड़ी फसल होने पर निराई-गुड़ाई करते समय पौधे टूटने का भय रहता है।

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सौंफ की कटाई और पैदावार

फसल की कटाई तब करनी चाहिए जब फसल का बीज अच्छे से पाक के तैयार हो जाए, फसल की कटाई तब करें जब बीज पूरी तरह से पके और सूखने लगे। 

आमतौर पर यह समय मार्च से अप्रैल के बीच होता है। कटाई की विधि पौधों को काटकर उनकी मंड़ाई करें और बीजों को सुखाएं। सौंफ की उपज लगभग 12-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।

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