मेरीखेती की टीम किसानों की समृद्धि को लक्ष्य मानकर निरंतर किसान हित में निःशुल्क किसान पंचायत का आयोजन, मासिक पत्रिका और ऑनलाइन माध्यम से लाभकारी जानकारी किसानों तक पहुँचाने का कार्य करती आ रही है।
इसी कड़ी में अब गेंहू की फसल कटाई होने के बाद धान की बुवाई की तैयारी करने वाले किसानों के लिए मेरीखेती टीम ने वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक रितेश शर्मा जी का साक्षात्कार लिया।
डॉ रितेश शर्मा कृषि वैज्ञानिक होने की वजह से धान की फसल की अच्छी उपज लेने की सभी तरकीबों के बारे में जानते हैं। क्योंकि रितेश शर्मा को कृषि क्षेत्र में वर्षों का अनुभव है।
आइए किसान भाइयों अपको मेरीखेती की टीम द्वारा लिए गए रितेश शर्मा जी से धान की बुवाई को लेकर किए गए प्रश्नोत्तरी के जानेंगे।
मेरीखेती - किसान भाई धान की बुवाई किस विधि से करें कि उनको अच्छी फसल प्राप्त हो सके?
रितेश शर्मा - धान की बुवाई प्रमुख रूप से नर्सरी विधि और सीधी बिजाई इन दो तरीके से की जाती है। किसान भाई यदि सही दिशानिर्देशन और उपयुक्त मृदा जलवायु में बेहतर किस्म का चयन करके किसी भी विधि से बुवाई करें तो उनको निश्चित शानदार उत्पादन व लाभ प्राप्त हो सकता है।
मेरीखेती - धान की नर्सरी विधि और सीधी बिजाई विधि में क्या अंतर है?
रितेश शर्मा - धान के बीज से पौध तैयार करने के बाद उसकी रोपाई करना नर्सरी विधि के अंतर्गत आता है। वहीं, गेंहू आदि की भांति खेत में सीधे रूप से धान की बुवाई करना सीधी बुवाई विधि कहलाता है।
मेरीखेती - धान की बुवाई करते समय किन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए ?
रितेश शर्मा - धान की बुवाई करने से पहले धान के बीज की उन्नत प्रजाति का चयन कर उसे एक बाल्टी पानी में डालकर अगर संभव हो सके तो पानी में नमक मिलाकर बीज को कुछ समय के लिए छोड़ देना चाहिए।
मजबूत और अच्छे बीज बाल्टी की निचली सतह पर रुक जाएंगे बाकी जो भी हल्के या खराब बीज होंगे वो ऊपर आ जाएंगे। ख़राब बीजों को पानी के ऊपर से निकालकर फेंक दें। इसके बाद जो अच्छे बीज को धूप में सुखाने के लिए रख दें। इसके बाद नर्सरी या खेत में इन बीजों की रोपाई करें।
मेरीखेती - धान के पौधरोपण के समय कितना फासला रखना उचित है ?
रितेश शर्मा - धान की पोधरोपण के दौरान 20 से.मी. का फासला रखना उत्तम पैदावार के लिए अत्यंत आवश्यक है। साथ ही, खेत के बीच-बीच में एक पगडंडी के समान खेत खाली होना जरूरी है।
ताकि खाद उर्वरक देने में फसल को कोई नुकसान ना पहुंचे और मृदा एवं फसलों को अंदर तक सूर्य का प्रकाश मिल सके। इसका सबसे बड़ा लाभ फसल को रोग प्रतिरोधक बनाना भी है।