भारत एक कृषि प्रधान देश हैं यहां के किसान खेती के साथ पशुपालन भी करते हैं। पशुपालन से किसानों के घर का खर्च आसानी से चल जाता हैं।
पशुपालक पशुओं से प्राप्त दूध, दही, घी और मक्खन बेचकर महीने में अच्छी कमाई कर लेते हैं।
पशुपालकों को पशुओं से अच्छा मुनाफा कमाने के लिए उनको पशुओं को अच्छा पौष्टिक आहार देना पड़ता हैं, जिसमें हरा चारा सबसे प्रमुख होता हैं गर्मी के मौसम में अगर पशुओं को हरा चारा मिलता रहे तो उनसे अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता हैं।
आज के इस लेख में हम एक ऐसे चारे के बारे में जानकरी लेकर आए हैं जो की मकचरी के नाम से जाना जाता हैं।
मकचरी प्रचुर मात्रा में कल्ले पैदा करती है और इसकी पत्तियाँ गहरी हरी और संकरी होती हैं, जो लंबे समय तक हरी रहती हैं।
मकचरी पशुओं को हरा, सूखा या सहेजकर सिलेज या घास को चारे के रूप में दिया जा सकता है। यह फसल अम्लीय मृदा में उगाई जा सकती है और उन क्षेत्रों में उपयुक्त है जहाँ पानी रुक जाता है।
ये भी पढ़ें: लूसर्न की खेती - चारा फसलों की रानी के साथ उच्च उत्पादन कैसे प्राप्त करें
मकचरी की खेती के लिए मक्का की फसल जैसे स्थिति की आवश्यकता होती हैं इसके लिए आवश्यक जलवायु की स्थिति और मिट्टी निम्नलिखित हैं:
मकचरी एक उत्कृष्ट मल्टीकट चारा है और यह गर्म क्षेत्रों में उच्च आर्द्रता और वर्षा वाले स्थानों में अच्छी तरह उगता है।
यह फसल मक्का जैसी दिखती है, लेकिन इसकी पहचान इसके अधिक तिल्लीकरण (tillering) से की जा सकती है। यह आर्द्र उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में अच्छी तरह अनुकूलित होती है।
अच्छी तरह से जल निकासी वाली रेतीली दोमट से लेकर दोमट मिट्टियाँ, जिनका pH 5.5 से 7.0 के बीच हो, मकचरी की वृद्धि के लिए आदर्श होती हैं।
खेत को निरंतर खरपतवार मुक्त बुआई के लिए पूरी तरह से तैयार किया जाना चाहिए।
एक बार हल से जुताई करने के बाद, दो (आड़ा-तिरछा) बार हैरो और पाटे का उपयोग करना पर्याप्त होता है ताकि एक अच्छा बीज बिस्तर तैयार किया जा सकता हैं।
ये भी पढ़ें: बरसीम की खेती कैसे की जाती है?
मकचरी की खेती में बुआई का समय मौसम के आधार पर निर्धारित किया जाता हैं, बीज दर बुवाई के तरिके पर निर्धारित किया जाता हैं।
चारा उपयोग के लिए, पहली कटाई बुआई के 60-70 दिन बाद करनी चाहिए और उसके बाद हर कटाई के 40-45 दिन बाद अगली कटाई करनी चाहिए।