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मूँग की फसल के घातक रोगों के लक्षण और उनकी रोकथाम

Published on: 14-May-2024
Updated on: 04-Dec-2024

मूँग की खेती गर्मी के मौसम में भारत में बड़े पैमाने पर की जाती है। किसानों को इस फसल में कई रोगों का सामना करना पड़ता है जिससे की फसल की उपज में बहुत कमी आती है। 

मूंग की फसल में कई ऐसे रोग लगते है जिनसे फसल का उत्पादन आधे से भी कम हो जाता है। अगर किसान समय से इन रोगों की रोकथाम कर लेते है तो इस नुकसान को काफी हद तक ख़त्म किया जा सकता है। 

इस लेख में हम आपको मूंग की फसल की प्रमुख बीमारियों के लक्षण और उनकी रोकथाम के बारे में जानकारी देंगे।   

मूँग की फसल के मुख्य रोग

मूँग की फसल वैसे तो कई रोगों से संक्रमित होती है। यहाँ हम आपको कई ऐसी बीमारियों के बारे में जानकारी देंगे जिससे की आप उन रोगों को समय से पाचन कर उनकी रोकथाम कर सकते है। 

मूँग की फसल में कई रोग लगते है जैसे की - एन्थ्राक्नोज रोग, पाउडरी फफूंदी रोग, पत्ती धब्बा रोग, रस्ट रोग, पीला चितकबरी रोग, सुखी जड़ सड़न रोग इनमे से सबसे खतनाक रोग है।

एन्थ्राक्नोज रोग (anthracnose)

ये रोग मूँग की फसल के हर हिस्से को संक्रमित करता है और पौधे की वृद्धि में दिखाई देता है। परिपत्र, पत्तियों और फलियों पर गहरे मध्य भाग और चमकीले लाल नारंगी किनारों वाले काले, धँसे हुए धब्बे। 

संक्रमण गंभीर होने पर प्रभावित भाग सूख जाते हैं। संक्रमण के कारण बीज बोने के तुरंत बाद अंकुर झुलस जाते हैं या बीजों का अंकुरण नहीं होता है। गंभीर संक्रमण पूरी पत्ती में फैलता है और झुलसा जाता है।

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एन्थ्राक्नोज रोग की रोकथाम के उपाय  

  • बुवाई के लिए सुरक्षित और प्रमाणित मूँग बीज का चयन करें।
  • बीजों को बीमारी से बचाने के लिए बुवाई से पहले 10 मिनट के लिए 54 डिग्री सेल्सियस पर गर्म पानी का उपचार करें।
  • अगर हर साल खेत में बीमारी आती है, तो फसल चक्र का पालन करें।
  • 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति कि.ग्रा. बीजों को उपचारित करें।
  • बुबाई के 40 और 55 दिन पश्चात फफूद नाशक दवा छिड़कें, जैसे मेन्कोजेब 75 डब्लूपी 2.5 ग्राम/ली. या कार्बेन्डाजिम 50 डब्लूपी 1 ग्राम/ली।

पाउडरी फफूंदी रोग (Powdery mildew)

ये मूँग की फसल में लगने वाले घातक रोगों में से एक है। मूँग की फलियों में पाउडरी फफूंदी  बीमारी का प्रकोप गंभीर रूप से देखा जा सकता है। 

पत्तियों और अन्य हरे भागों पर सफेद पाउडर जैसे धब्बे दिखाई देते हैं, जो बाद में फीके हो जाते हैं। ये धब्बे आकार में धीरे-धीरे बढ़ते हैं और निचली सतह पर गोलाकार बन जाते हैं। 

जब संक्रमण गंभीर होता है, तो पत्तियों की दोनों सतहें सफेद हो जाती हैं। गंभीर रूप से प्रभावित क्षेत्र सिकुड़कर टूट जाते हैं। 

गंभीर संक्रमण में पत्तियां पीली हो जाती हैं, इसलिए पत्तियां जल्दी गिर जाती हैं। यह रोग भी जबरन परिपक्वता पैदा करता है।

पाउडरी फफूंदी रोग की रोकथाम के उपाय  

  • इस रोग से प्रभावित मूँग के खेत में 10 दिनों के अंतराल पर एनएसकेई @ 5% या नीम तेल @ 3% का दो बार छिड़काव करें। 
  • फसल को रोगों से बचाने के लिए केवल रोग प्रतिरोधी प्रजातियों का प्रयोग करें। 
  • अगर खेत में रोग का प्रकोप दिखाई देता है तो कार्बेन्डाजिम 200 ग्राम या वेटटेबल सल्फर 600 ग्राम या ट्राइडेमोर्फ 200 ml का छिड़काव प्रति एकड़ की दर से करें। 
  • इस छिड़काव को 15 दिन बाद फिर से दोहराएँ।

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पीला चितकबरी रोग (Yellow mosaic disease) 

इस रोग की शुरुआत में नई पत्तियों की हरी परत पर छोटे पीले धब्बे दिखाई देते हैं। यह जल्द ही सुनहरे पीले या चमकीले पीले मोज़ेक के रूप में विकसित होता है। 

पत्तियों में पीला मलिनकिरण धीरे-धीरे बढ़ता है और अंततः पूरी तरह पीला हो जाता है। संक्रमित पौधे कम उपज देते हैं क्योंकि वे देर से परिपक्व होते हैं और कुछ फूल और फलियाँ धारण करते हैं। 

फलियाँ विकृत और छोटी होती हैं। बीज बनने से पहले पौधा मर जाता है।

पीला चितकबरी रोग की रोकथाम के उपाय 

  • रोग प्रतिरोधी या सहनशील किस्मों का चयन करें, जैसे Pant Moong-3, Pusa Vishal, Basanti, ML-5, ML337, PDM-54, King TJM-3, K-851, Pant Moong-2, Pusa Vishal, HUM-1 और Basanti।
  • प्रमाणित बीजो का उपयोग करें।
  • जुलाई के पहले सप्ताह तक बीज की बुवाई कतारों में करें, रोगग्रस्त पौधों को उखाडकर नष्ट करें।
  • मिश्रित फसल के लिए दो पंक्तियाँ (60 x 30 सेमी) या ज्वार (45 x 15 सेमी) उगाएँ। 
  • बीजों को थायोमेथोक्सम-70WS या इमिडाक्लोप्रिड-70WS से 4 ग्राम प्रति किग्रा की दर से उपचारित करें।
  • रोग का वाहक सफेद मक्खी कीट है, जिसे नियंत्रित करने के लिए ट्रायजोफॉ 40 ईसी, 2 मि.ली. प्रति लीटर या थायोमेथोक्साम 25 मि.ली. प्रति लीटर का उपयोग किया जाता है।

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पर्ण व्यांकुचन रोग या लीफ क्रिंकल

पर्ण व्यांकुचन रोग, जिसे लीफ क्रिंकल भी कहते हैं, एक महत्वपूर्ण विषाणु जनित रोग है। बीज पर्ण व्यांकुचन रोग को फैलाता है, और कुछ जगहों पर सफेद मक्खी भी इसे फैलाती हैं। 

इसके लक्षण आम तौर पर फसल बोने के तीन से चार सप्ताह में दिखाई देते हैं। इस रोग में दूसरी पत्ती बढ़ने लगती है, झुर्रियां आने लगती हैं और पत्तियों में मरोड़पन आने लगता है। खेत में संक्रमित पौधों को दूर से देखकर ही पहचाना जा सकता है। 

इस रोग के कारण पौधे का विकास रुक जाता है, जिससे सिर्फ नाम की फलियां निकलती हैं। यह बीमारी पौधे की किसी भी अवस्था में फैल सकती है।

पर्ण व्यांकुचन रोग की रोकथाम के उपाय 

  • रोग बीजों से फैलते हैं, इसलिए बीमार पौधों को उखाड़ कर जला कर नष्ट करना चाहिए। 
  • फसल को पर्ण व्यांकुचन रोग (लीफ क्रिंकल) से बचाने के लिए इमिडाक्रोपिरिड को बुवाई के 15 दिन बाद या रोग के लक्षण दिखने पर छिड़काव करें।

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