रेशम उत्पादन को सेरीकल्चर कहते हैं, जिसमें रेशम के कीड़ों को पालकर उनसे रेशम का उत्पादन किया जाता है। भारत में रेशम की साड़ियां विशेष स्थान रखती हैं और यह बुनकरों की शिल्प कला का उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
रेशम किट पालन करके किसान अच्छा-खासा मुनाफा कमा सकते हैं। यह एक प्राकृतिक रेशा है और इसे बढ़ावा देने के लिए सरकार की ओर से किसानों को भरपूर सहयोग दिया जा रहा है।
रेशम किट पालन एक लाभकारी व्यवसाय है जिसमें महिलाएं भी शामिल हो सकती हैं। सही मार्गदर्शन और ट्रेनिंग लेकर किसान इस व्यवसाय से अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।
रेशम उद्योग को बढ़ावा देने के लिए 1949 में रेशम बोर्ड की स्थापना की गई थी। यह एक कुटीर उद्योग है जो ग्रामीण क्षेत्र में कम लागत में तेजी से उत्पादन शुरू करने का मौका देता है।
कृषि कार्यों और घरेलू कार्यों के साथ भी इसे किया जा सकता है। रेशम उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए अनुसंधान और विकास पर जोर दिया गया और नई तकनीकों का विकास किया गया।
रेशम उद्योग ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देता है। यह लाखों लोगों के लिए रोजगार का स्रोत है, विशेषकर ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में।
रेशम उत्पादन से किसानों को अतिरिक्त आय का स्रोत मिलता है और यह कृषि आधारित उद्योग के रूप में अपनी जगह बना चुका है।
रेशम उद्योग भारत की समृद्ध विरासत का प्रतीक है और यह उद्योग न केवल आर्थिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि वैज्ञानिक और पर्यावरणीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।
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भारत में दो प्रकार का रेशम उत्पादन किया जाता है:
रेशम किट पालन के लिए सबसे पहले शहतूत की खेती करनी होती है -
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