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रेशम किट पालन (सेरीकल्चर) क्या है: कैसे करें रेशम किट पालन?

Published on: 16-Jul-2024
Updated on: 16-Jul-2024

रेशम उत्पादन को सेरीकल्चर कहते हैं, जिसमें रेशम के कीड़ों को पालकर उनसे रेशम का उत्पादन किया जाता है। भारत में रेशम की साड़ियां विशेष स्थान रखती हैं और यह बुनकरों की शिल्प कला का उत्कृष्ट उदाहरण हैं। 

रेशम किट पालन करके किसान अच्छा-खासा मुनाफा कमा सकते हैं। यह एक प्राकृतिक रेशा है और इसे बढ़ावा देने के लिए सरकार की ओर से किसानों को भरपूर सहयोग दिया जा रहा है।

रेशम किट पालन एक लाभकारी व्यवसाय है जिसमें महिलाएं भी शामिल हो सकती हैं। सही मार्गदर्शन और ट्रेनिंग लेकर किसान इस व्यवसाय से अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।

रेशम उद्योग का इतिहास और महत्व

रेशम उद्योग को बढ़ावा देने के लिए 1949 में रेशम बोर्ड की स्थापना की गई थी। यह एक कुटीर उद्योग है जो ग्रामीण क्षेत्र में कम लागत में तेजी से उत्पादन शुरू करने का मौका देता है।

कृषि कार्यों और घरेलू कार्यों के साथ भी इसे किया जा सकता है। रेशम उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए अनुसंधान और विकास पर जोर दिया गया और नई तकनीकों का विकास किया गया।

रेशम उद्योग ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देता है। यह लाखों लोगों के लिए रोजगार का स्रोत है, विशेषकर ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में।

रेशम उत्पादन से किसानों को अतिरिक्त आय का स्रोत मिलता है और यह कृषि आधारित उद्योग के रूप में अपनी जगह बना चुका है।

रेशम उद्योग भारत की समृद्ध विरासत का प्रतीक है और यह उद्योग न केवल आर्थिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि वैज्ञानिक और पर्यावरणीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।

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रेशम कितने प्रकार का होता है?

भारत में दो प्रकार का रेशम उत्पादन किया जाता है:

  • शहतूती रेशम (मलबरी सिल्क): इसका उत्पादन जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में होता है।
  • गैर शहतूती रेशम (नॉन-मलबरी सिल्क): इसका उत्पादन झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, उत्तर प्रदेश और उत्तर-पूर्वी राज्यों में होता है।

रेशम किट पालन के लिए करनी होगी शहतूत की खेती

रेशम किट पालन के लिए सबसे पहले शहतूत की खेती करनी होती है -

  • शहतूत की खेती के लिए खेत को जोतकर अच्छे से तैयार करें।
  • 4 x 4 फीट की दूरी पर पौधों का रोपण करें।
  • एक एकड़ में 2700 से 3600 पौधे लगाए जा सकते हैं।
  • एक एकड़ से 6000 - 7000 किलोग्राम पत्तियों का उत्पादन होता है।

रेशम किटों का रखरखाव

  • कीड़ों के पालन के लिए साफ-सुथरी जगह का चुनाव करें।
  • कीटों के रखरखाव के लिए ट्रे, बांस और टैंक का प्रयोग करें।
  • कीटांडों को लाकर साफ स्थान पर रखें।
  • कीटांडों से प्रस्फुटित कीट बहुत कोमल होते हैं, इसलिए इन्हें कोमल पत्ते ही देने चाहिए।
  • 28 दिन बाद कीट 8000 गुना आकार में बढ़ जाते हैं और एक दिन में 30-35 ग्राम तक शहतूत की पत्तियाँ खाते हैं।
  • रेशम किट चार बार केचुली उतारते हैं और रेशम निर्माण की प्रक्रिया 72 घंटों तक चलती है।

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उत्पादन और मुनाफा

  • एक किट 35 से 40 किलोग्राम खोया निर्माण करता है।
  • प्रति एकड़ में 225 - 240 किलोग्राम उत्पादन होता है।
  • इसकी बिक्री सरकार द्वारा करवाई जाती है, जिससे किसानों को अच्छा मुनाफा मिल सकता है।

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