Ad

गेहूं की फसल में रतुआ रोग: पहचानें लक्षण और अपनाएं प्रभावी उपचार

Published on: 02-Dec-2024
Updated on: 02-Dec-2024

गेहूं की खेती बड़े पैमाने पर रबी के मौसम में की जाती है। गेहूं की फसल को ठंडे तापमान की आवश्यकता होती हैं। गेहूं की फसल पाले को कुछ हद तक सहन कर सकती है।

गेहूं की फसल को भी कई रोगों का खतरा होता है। रोग फसल की उपज पर बहुत असर डालते है। गेहूँ की फसल में रतुआ रोग सबसे घातक होता हैं जिसकों अंग्रेजी में Rust के नाम से जाना जाता हैं।

इन रोगों का प्रकोप होने पर क्या नियंत्रण उपाय करने चाहिए, इस लेख में हम आपको बताएंगे।

गेहूं की फसल में लगने वाले 3 रतुआ रोग

1. भूरा रतुआ रोग

भूरा रतुआ रोग पक्सीनिया रिकोंडिटा ट्रिटिसाई नामक कवक से होता है, जो भारत में व्यापक रूप से पाया जाता है।

इस रोग की शुरुआत हिमालय (उत्तर भारत) और निलगिरी पहाड़ियों (दक्षिण भारत) से होती है, जहां यह कवक जीवित रहता है।

वहां से यह हवा के माध्यम से मैदानी क्षेत्रों में फैलकर गेहूं की फसल को प्रभावित करता है।

लक्षण

  • शुरुआत में पत्तियों पर नारंगी रंग के छोटे-छोटे बिंदु दिखाई देते हैं।
  • समय के साथ, ये बिंदु फैलकर पूरी पत्ती को ढक लेते हैं।
  • आर्द्रता बढ़ने पर ये धब्बे काले रंग के हो जाते हैं।

ये भी पढ़ें: माहू या लाही, हरदा रोग अल्टरनेरिया ब्लाईट रोगों से कैसे बचाऐं गेंहू की फसल?

2. पीला रतुआ रोग (येलो रस्ट)

यह रोग पक्सीनिया स्ट्राईफारमिस नामक कवक से होता है।

लक्षण

  • पत्तियों की ऊपरी सतह पर पीली धारियां दिखाई देती हैं।
  • समय के साथ, ये धारियां पूरी पत्तियों को पीला कर देती हैं।
  • संक्रमित पौधों से पीला पाउडर गिरने लगता है।

प्रभाव

  • यह रोग यदि कल्ला बनने से पहले आता है, तो फसल में बाली नहीं आती।
  • यह हिमालय से उत्तर भारतीय मैदानों तक फैलता है।
  • गर्मी बढ़ने पर रोग कम हो जाता है, और धारियां काले रंग में बदल जाती हैं।

3. तना रतुआ या काला रतुआ रोग

यह रोग पक्सीनिया ग्रैमिनिस ट्रिटिसाई नामक कवक के कारण होता है।

प्रसार

  • यह निलगिरी और पलनी पहाड़ियों से शुरू होता है और मुख्यतः दक्षिण व मध्य भारत में अधिक प्रभावी होता है।
  • उत्तरी क्षेत्रों में यह फसल पकने के समय कम प्रभाव डालता है।

लक्षण

  • तनों और पत्तियों पर चॉकलेट जैसा काला रंग दिखाई देता है।
  • यह रोग 20 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान पर तेजी से फैलता है।

लोक-1 जैसी प्रजातियों में यह रोग आम है, जबकि नई दक्षिणी और मध्य प्रजातियां इससे बचाव कर सकती हैं।

ये भी पढ़ें: करनाल बंट रोग, अनावृत कंड रोग, चूर्णिल आसिता रोग, लीफ ब्लाइट रोग और फुट रांट रोग से कैसे बचाऐं गेंहू की फसल?

तीनों रतुआ रोगों का इलाज कैसे करे?

सबसे पहले बुवाई के समय इन रोगों से प्रतिरोधी बीजों की ही बुवाई करें यानि की बुवाई के लिए उन्नत प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग करें।

रोग की रोकथाम के लिए बुवाई से पहले बीज को थाइरम 2.5 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए।

खड़ी फसल में रोग का प्रकोप दिखाई देने पर रोकथाम हेतु खड़ी फसल में प्रोपिकोनोजोल 25 ई.सी. 0.1 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें।

Ad