गेहूं की खेती बड़े पैमाने पर रबी के मौसम में की जाती है। गेहूं की फसल को ठंडे तापमान की आवश्यकता होती हैं। गेहूं की फसल पाले को कुछ हद तक सहन कर सकती है।
गेहूं की फसल को भी कई रोगों का खतरा होता है। रोग फसल की उपज पर बहुत असर डालते है। गेहूँ की फसल में रतुआ रोग सबसे घातक होता हैं जिसकों अंग्रेजी में Rust के नाम से जाना जाता हैं।
इन रोगों का प्रकोप होने पर क्या नियंत्रण उपाय करने चाहिए, इस लेख में हम आपको बताएंगे।
भूरा रतुआ रोग पक्सीनिया रिकोंडिटा ट्रिटिसाई नामक कवक से होता है, जो भारत में व्यापक रूप से पाया जाता है।
इस रोग की शुरुआत हिमालय (उत्तर भारत) और निलगिरी पहाड़ियों (दक्षिण भारत) से होती है, जहां यह कवक जीवित रहता है।
वहां से यह हवा के माध्यम से मैदानी क्षेत्रों में फैलकर गेहूं की फसल को प्रभावित करता है।
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यह रोग पक्सीनिया स्ट्राईफारमिस नामक कवक से होता है।
यह रोग पक्सीनिया ग्रैमिनिस ट्रिटिसाई नामक कवक के कारण होता है।
लोक-1 जैसी प्रजातियों में यह रोग आम है, जबकि नई दक्षिणी और मध्य प्रजातियां इससे बचाव कर सकती हैं।
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सबसे पहले बुवाई के समय इन रोगों से प्रतिरोधी बीजों की ही बुवाई करें यानि की बुवाई के लिए उन्नत प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग करें।
रोग की रोकथाम के लिए बुवाई से पहले बीज को थाइरम 2.5 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए।
खड़ी फसल में रोग का प्रकोप दिखाई देने पर रोकथाम हेतु खड़ी फसल में प्रोपिकोनोजोल 25 ई.सी. 0.1 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें।