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तारामीरा की खेती: कम पानी और सूखे क्षेत्रों के लिए लाभदायक फसल

Published on: 04-Dec-2024
Updated on: 04-Dec-2024
A vibrant field of blooming yellow mustard flowers under a clear blue sky, representing the beauty and growth of mustard farming
फसल नकदी फसल

तारामीरा की खेती अक्सर बारानी क्षेत्रों में की जाती है, जहाँ अन्य फसलों को सफलतापूर्वक उगाया नहीं जा सकता है।

ज्वार की फसल लेने के बाद खरीफ की चारे (उड़द, मूंग, चंवला आदि) को हल्की जुताई करके सफलतापूर्वक इसको बोया जा सकता है।

रबी मौसम में तारामीरा की बुवाई करने के लिए वर्षा ऋतु में खेत खाली नहीं छोड़ना चाहिए। इस लेख में हम आपको तारामीरा की सफल खेती के बारे में जानकारी देंगे।

तारामीरा की खेती के लिए जलवायु और मिट्टी

तारामीरा की खेती रबी के मौसम में की जाती है इसकी खेती के लिए ठंडी जलवायु की आवश्कता होती हैं।

तारामीरा को कम वर्षा वाले इलाकों में आसानी से उगाया जा सकता हैं, इसकी खेती के लिए अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती हैं।

इसकी खेती हल्की दोमट मिट्टी में आसनी से की जा सकती हैं। इसकी खेती के लिए भूमि अच्छी तरह से भुरभुरीकी होनी चाहिए। वैसे इसकी खेती हर प्रकार की मिट्टी में आसानी से की जा सकती हैं।

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तारामीरा की उन्नत किस्में और बीज की मात्रा

तारामीरा की अधिक उपज प्राप्त करने के लिए अच्छी किस्मों का चुनाव करना बहुत आवश्यक हैं। इसकी किस्में निम्नलिखित हैं जो कि अच्छी देखभाल करने पर अच्छी उपज दे सकती हैं:

  • टी- 27
  • वल्लभ तारामीरा- 2
  • आरटीएस
  • आरटीएम (नरेन्द्रतारा)
  • आरटीएम- 314

तारामीरा की खेती (Taramira Farming) के लिए 5 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टेयर पर्याप्त होता है। बुवाई से पहले बीज को 1.5 ग्राम मैंकोजेब द्वारा प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज को उपचारित करें।

खेत की तैयारी और बुवाई 

तारामीरा की बुवाई करने के लिए खेती की 2 बार हल या कल्टीवेटर से अच्छी तरह जुताई कर लेनी चाहिए जिससे की मिट्टी भुरभुरी हो जाए।

बारानी क्षेत्रों में बुवाई का समय भूमि की नमी और तापमान पर निर्भर करता है। नमी की उपलब्धि के आधार पर तारामीरा (Taramira) की बुवाई 15 सितम्बर से 15 अक्टूबर तक कर देनी चाहिए।

कतारों में 5 सेंटीमीटर गहरा बीज बोए। कतार से कतार की दूरी 40 सेंटीमीटर रखें।

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तारामीरा की कटाई 

तारामीरा फसल के पत्ते झड़ने लगे और फलियां पीली पड़ने लगे तो उसे काट लेना चाहिए, अन्यथा दाने खेत में झड़ने की संभावना रहती है।

उपरोक्त तकनीक और अनुकूल परिस्थितियों से 12 से 17 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है।