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मेरीखेती ने सितंबर महीने की किसान पंचायत का भव्य आयोजन किया

Published on: 23-Sep-2024
Updated on: 23-Sep-2024

मेरीखेती ने सितंबर माह की किसान पंचायत का भव्य आयोजन रासायनिक खेती की वजह जैविक खेती अपनाने के विषय पर 20 सितंबर को गाजियाबाद के एनडीआरएफ के कैंप में कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस भव्य कार्यक्रम के मुख्य अथिति और आयोजक निम्नलिखित थे।

मुख्य अतिथि - श्री नामदेव उप कमांडेंट, 8वीं बटालियन एनडीआरएफ गाजियाबाद, विशेष अतिथि - डॉ. गंगेश शर्मा, निदेशक, राष्ट्रीय जैविक और प्राकृतिक खेती केंद्र, गाजियाबाद, आयोजक - श्री रवींद्र कुमार, क्षेत्रीय निदेशक, राष्ट्रीय जैविक और प्राकृतिक खेती केंद्र , गाजियाबाद, सह आयोजक- डॉ. विपिन कुमार, प्रभारी अधिकारी, केवीके जीबीनगर, डॉ. प्रवीण कुमार सीईओ नरसेना ऑर्गेनिक फार्मर्स प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड बुलंदशहर मौजूद रहे।

साथ ही, बहुत सारे प्रगतिशील किसान भी मौजूद रहे, जिनमें संजीव प्रेमी ग्राम रूपवास, मुकेश नगर ग्राम बम्बावार्ड, ओमवीर सिंह ग्राम बम्बावार्ड, शिव कुमार ग्राम खुर्शादपुरा, रामफल ग्राम धनुवाश, मुनेन्द्र चौधरी ग्राम खेन्द्रा, युद्धवीर ग्राम दुजाना, सुमित त्यागी ग्राम कचरा, भूरा त्यागी ग्राम बयाना, विनोद चौहान जिला आठ, श्रीमती हितेश चौधरी जिला अमरोहा आदि हजारों किसान मौजूद रहे।

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किसानों को रासायनिक खेती से हटकर जैविक खेती अपनाने के लिए उपस्थिति डॉ विपिन कुमार शर्मा जैसे वरिष्ठ वैज्ञानिकों ने बताया कि रासायनिक खेती स्वास्थ्य के साथ साथ मृदा का भी नाश करती जा रही है। इसकी वजह से लोगों को रोग और मृदा की उर्वरक क्षमता में निरंतर गिरावट देखने को मिल रही है।

कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि रासायनिक उर्वरकों के अधिक मात्रा में उपयोग से न सिर्फ फसल प्रभावित होती है बल्कि इससे जमीन की सेहत, इससे पैदा होने वाली फसल को खाने वाले इंसानों और जानवरों की सेहत के साथ ही पर्यावरण पर भी बेहद प्रतिकूल असर पड़ता है। अनाज और सब्जियों के माध्यम से इस जहर के लोगों के शरीर में पहुंचने के कारण वे तरह-तरह की बीमारियों का शिकार बन रहे हैं।

यूरिया के अत्यधिक इस्तेमाल ने नाइट्रोजन चक्र को भी बुरी तरह प्रभावित किया है। नाइट्रोजन चक्र बिगड़ने का दुष्परिणाम केवल मिट्टी-पानी तक सीमित नहीं रहा है। नाइट्रस ऑक्साइड के रूप में यह एक ग्रीनहाउस गैस भी है और वैश्विक जलवायु परिवर्तन में इसका बड़ा योगदान है।

केंद्रीय रसायन और उर्वरक मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार 1950-51 में भारतीय किसान मात्र सात लाख टन रासायनिक उर्वरक का प्रयोग करते थे। यह अब कई गुणा बढ़कर 335 लाख टन हो गया है। इसमें 75 लाख टन विदेशों से आयात किया जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि रासायनिक खाद के बढ़ते इस्तेमाल से पैदावार तो बढ़ी है। लेकिन साथ ही खेत, खेती और पर्यावरण पर इसका प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ा है।

कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल में कटौती नहीं की गई तो मानव जीवन पर इसका काफी दुष्प्रभाव पड़ेगा। उनके मुताबिक, खाद्यान्नों की पैदावार में वृद्धि की मौजूदा दर से वर्ष 2025 तक देश की आबादी का पेट भरना मुश्किल हो जाएगा। इसके लिए मौजूदा 253 मीट्रिक टन खाद्यान्न उत्पादन को बढ़ा कर तीन सौ मीट्रिक टन के पार ले जाना होगा।

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