DBW 371 (करण वृंदा) गेहूं किस्म: अधिक उपज और रोग प्रतिरोधक क्षमता वाली किस्म

Published on: 20-Nov-2024
Updated on: 20-Nov-2024

गेहूं दुनिया की लगभग 2.5 अरब आबादी के लिए उगाए जाने वाले महत्वपूर्ण खाद्य पदार्थों में से एक है।

गेहूं की फसल की खेती मुख्य रूप से तीन व्यापक सांस्कृतिक स्थितियों के तहत की जाती है, अर्थात् समय पर बुआई सिंचित, देर से बोया गया सिंचित और समय पर बोया गया प्रतिबंधित सिंचाई आदि।

मैदानी क्षेत्रों के लिए DBW 371 किस्म को विकसित किया गया हैं, इसकी विशेषताएँ इस लेख में आपको देखने को मिलेंगे।

DBW 371 (करण वृंदा) गेहूं किस्म की विशेषताएँ

  • DBW 371 (करण वृंदा) किस्म गेहूं की अधिक उपज देनी वाली किस्मों में से एक हैं। इस किस्म को भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान करनाल द्वारा विकसित किया गया हैं।
  • इस किस्म को अगेती बुवाई और सिंचित क्षेत्रों के लिए विकसित किया गया हैं। ये किस्म संस्थान द्वारा 2023 में विकसित की गयी थी।
  • DBW 371 (करण वृंदा) किस्म की औसत उपज  75.9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हैं, अच्छी देखभाल की स्थिति में ये किस्म 87.1 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक भी उपज देने की क्षमता रखती हैं।
  • DBW 371 क़िस्म की बाली निकलने की अवधि बुवाई के 102 दिन पर आती हैं, ये किस्म बुवाई करने के बाद 147-153 दिनों में पक कर तैयार हो जाती हैं। इस किस्म के पौधों की ऊंचाई 97-103 (cm) तक होती हैं। 
  • DBW 371 (करण वृंदा) गेहूं किस्म पत्ती जंग रोग (leaf Rust Disease) से प्रतिरोधी हैं। इसमें  प्रोटीन सामग्री (12.2%), उच्लौहसामग्री (44.9); फिनोल सामग्री(2.8) मौजूद हैं।
  • इससे उपज के अलावा 75 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तुड़ा भी बनता हैं।

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DBW 371 (करण वृंदा) गेहूं किस्म के बुवाई का क्षेत्र 

DBW 371 (करण वृंदा) किस्म को उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्र (एनडब्ल्यूपीजेड) पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान (कोटा और उदयपुर संभाग को छोड़कर) और पश्चिमी उत्तर प्रदेश (झांसी संभाग को छोड़कर), जम्मू-कश्मीर के कुछ हिस्से (जम्मू और कठुआ जिला) और हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्से (ऊना जिला और पांवटा घाटी) और उत्तरांचल (तराई क्षेत्र) के लिए विकसित किया गया हैं।

DBW 371 (करण वृंदा) गेहूं बोने का समय

इस किस्म के बोने का समय नवंबर का पहला और दूसरा सप्ताह हैं।

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